घूमता चश्मा

Friday, April 30, 2010

मगर आज डर लगता है मुझे..

एक पुस्तक लिख रहा हूँ आजकल कुछ खाली वक़्त अगर मिल जाता है तो..  शीर्सक है Three Miss Calls..  उसी का एक छोटा सा सार कह लीजिये या एक परिचय.. बस आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ मेरी उस पुस्तक का एक छोटा सा अंश.. हाँ हालाकि मेरी वो पुस्तक अंग्रेजी भाषा मे है..और मैं ये सार आपके सामने हिंदी मे रख रहा हूँ...

सुबह प्रकृति की किलकारियों पे तो ध्यान देना तो शायद छोड़ ही सा दिया था, बस याद रहता था तो इतना की उसकी आवाज सुन्नी है सुबह उठते ही. सुबह घर से निकलते ही कहाँ जाना है शायद भूल भी जाऊं पर उसका चेहरा देखने की प्रबल जरुरत सदा ही महसूस होती थी. पता नहीं क्यूँ उससे इतनी मोहब्बत थी की कभी उससे बिछड़ने के बारे मे तो सोचा तक नहीं. बस एक मौका मिल जाये तो फ़ोन खुद ब खुद लग जाता था उसको. कभी ही शायद सोया हूँगा रात को उसकी आवाज  सुने  बिना... मगर आज डर लगता है मुझे.. हिम्मत नहीं बची मेरे पास रात को उसको फ़ोन करने की, क्युंकी आज मुझे पता है की शायद रात भर वो फ़ोन अब वेटिंग मे ही मिलेगा, नहीं है मेरे पास हिम्मत दिन मे या सुबह या किसी भी वक़्त फ़ोन मिलाने की, क्युंकी मुझे पता है की या तो उठेगा नहीं और अगर उठ गया तो बहुत से इल्जाम मेरे पे एक बार फिर से लग जायेंगे. क्या यही प्यार होता है की जब तक साथ थे कोई मुश्किलें न थी तब तो हम एक दुसरे मे ही पूरी दुनिया देख लेते हैं और जरा सी मुश्किलें सामने आई तो एक आसां रास्ता मिलते ही उसपे मुड़ जाते हैं.. और वही  इन्सान जो कभी आपका पूरक था आज शायद सबसे बड़ा शत्रु हो जाता है.. साथ मे उसके दोस्त भाई बहन भी आप से बे इन्तेहाँ नफरत करने लगते हैं जैसे की अब आपके पास दिल ही न बचा हो, जितने जख्म दे दो दर्द नहीं होगा.  वो तो आपसे दूरियां अपना ही लेती है साथ मे आपके पीछे छोड़ देती है बहुत से और लोग आपको हर पल आपकी हार का एहसास दिलाने को.. और आप भी भूल जाते हो की कल तक आप जो एक स्वछंद बेपरवाह किसी राजा की तरह जी रहे थे आज आप अपने घुटनों  पे हो उन लोगों के सम्मुख जिनको आप कभी जीने का तरीका सिखाते थे.. यही नियति है, यही होनी है और यही शायद एक सफल प्रेम का असफल अंत.. आज मुझे पता है की वो मेरे सामने हो के मेरे से इत्ती दूर है की मै शायद उसे देख भी नहीं पाता.. बस देख पाता हूँ तो इत्ता की हर पल उसे मुझसे और दूर करता जा रहा है...