घूमता चश्मा

Thursday, April 29, 2010

प्लीज़ बेइज्जती कर दो.. नाम कमाना है..

नौकरी बजाने के ही एक चक्कर मे शहर से बाहर निकले और एक गाजीपुर नमक जिले मे जा पहुंचे. आयकर विभाग मे कुछ औडिट करनी थी तो वहीँ आयकर अधिकारी जी के सामने बैठे थे. साथ मे कोई एक सज्जन और थे कुछ नेता सरीखे या शायद ठेकेदार, अब ये नहीं बता सकता की समाज के या की किसी और चीज के. खैर जो भी थे थे बड़े ही प्रभावशाली व्यक्तित्व. उनकी एक बात ने बड़ा ही प्रभावित किया इतना की बस हम तुरंत ही चाहने लगे की बस  कोई आये हमारी बेइज्जती कर दे.. हाँ जी हम तब से अपनी बेइज्जती को तरस रहे हैं साहिब. अब वो बात क्या थी ये भी सुन लीजिये. बकौल उनके आप अपनी बेइज्जती करा लीजिये तो आप विश्व मे जरुर एक ना एक दिन अपना नाम कर लेंगे. नहीं जी ये कोई हवाई बातें नहीं उन्होंने तीन बहुत बड़े बड़े तर्क दिए हमे इस बात के पीछे के. आप भी पढ़िए वो तर्क या वो उदहारण..

पहला तर्क था महात्मा गाँधी जी का जिसमे उनकी दक्षिण अफ्रीका मे एक ट्रेन मे कुछ अंग्रेजों ने उनको बेइज्जत किया था बावजूद इसके की उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकेट था. इस बात ने बापू को इस कदर आहत किया की वहां से उन्होंने ठानी की बस अब तो इन सब अत्याचारों के खिलाफ एक अहिंसात्मक जंग छेड़नी होगी और वो दिन था और आज का दिन है कौन नहीं जानता विश्व भर मे बापू को. ये था बेइज्जत होके नाम कमाने वाला पहला तर्क.



दूसरा उदाहरण था बाबा भीम राव अंबेडकर का. कोई एक बारिश के दिन जब बाबा साहेब छोटे बालक थे किसी एक मकान की आड़ मे खड़े हो गए भीगने से बचने के लिए. इसी बीच मकान मालिक ने उन्हें खड़ा देखा और ज्यूँ ही उसे पता चला की ये बालक तो अछूत है, बस क्या था खुद भीगते हुए उसने बाबा साहेब को वहां से खदेड़ दिया. एक घटना और थी जहां पे बालक अंबेडकर किसी बेलगाडी मे बैठ के जा रहे थे, राह मे ही बैलगाड़ी वाले ने उनसे उनके पिता का नाम पुछा और जैसे ही उसे पता चला की बालक तो एक दलित पुत्र है उसने बाबा साहेब को गाडी से उतार दिया. बस उसी दिन बाबा साहेब ने शायद कुछ सोचा और आज के दिन हम जिस देश मे रह रहे हैं वो और उसका हर नागरिक उनके लिखे सिद्धांतों नियमों पे चल रहा है वो चाहे एक दलित हो या कोई ऊँची जात का, एक गरीब हो या बहुत धनवान व्यक्ति.


तीसरा उदाहरण था तुलसी दास जी का.. पत्नी प्रेम मे इतना व्याकुल हो बैठे की एक दिन बिना किसी सुचना या आमंत्रण के वो पहुँच गए अपनी पत्नी से मिलने उनके मायके. बस क्या था उनकी पत्नी उन्हें यकायक देख के कुछ इस तरह शर्मिंदा और क्रोधित हुई की उन्होंने कुछ इस तरह से तुलसी दास जी को कोसा की इस तरह का प्रेम जो तुम मुझसे करते हो बिना बुलाये इस तरह से आ पहुंचे लोग क्या कहेंगे, इतना प्रेम अगर तुमने भगवान से किया होता तो कुछ सार्थक होता. बस ये थी वो बेइज्जती जहां से उन्होंने कुछ ऐसा कर डाला की आज वो विश्व के एक महानतम ग्रन्थ श्री राम चरित मानस के रचयिता के रूप मे जाने जाते हैं.


बस ये तीन महापुरुष और उनकी ये बेईज्जतियाँ. बस हमारे मन मे तब से एक प्रबल इच्छा धर कर बैठी की कोई तो आये और कुछ इस कदर बेइज्जती कर दे की बस हम भी कुछ कर जाएँ इस दुनिया मे.  पर कोई उपाय सुझा ही नहीं जिससे हम खुद की बेइज्जती करा पाएं. हाँ एक और बात आती है मन मे की क्या आज के दौर मे जब हर कदम पे नफरत, गतिरोध और जलन रुपी महादानव व्याप्त है तो क्या बेइज्जती रुपी दानव अकेला इनको हरा पायेगा और क्या आज हमारे पास इतनी शर्म और इच्छाशक्ति व्यापत है की हम एक कठोर निर्णय लेके उसपे अमल कर पाएंगे. हाँ क्यूँ नहीं पर उसके लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ेगा शायद वो सब कुछ जिसकी हमे आदत है और जिसके बिना हम जीने की सोच भी नहीं पाते.


बेइज्जती हो जाने भर से हम सफल हो जायेंगे??


नहीं बिलकुल भी नहीं. उदाहरण पढने मे तो लगता है हमे भी सुनने मे लगा था की बस बेईज्जती हो जाएगी, मन कुछ कचोट देगा और कुछ कर जायेंगे. पर नहीं वो बेइज्जती भी सिर्फ उन्ही को कचोट सकती है जिनके पास परम इच्छा शक्ति, परम अंतर बल, कठोर मानसिकता और परम सहनशीलता हो. जो उन तीनों के पास था.


पर हमारे पास शायद नहीं है क्यूंकि हम तो हमेशा से आज की उन्नत तकनीक का सहारा लेके जीते आये हैं. चलने को गाडी ऑटो सब मौजूद है. खाने को दुनिया भर के व्यंजन बस जेब भर की दूरी पे हैं. इस कंप्यूटर और मशीनी दुनिया मे आत्म सम्मान और शर्म भी बस दिखावे भर के लिए ही बची है.


पर कोई बात नहीं आप एक बार कोशिश कर के देखिये. हाँ जनाब कोशिश करिए की कोई आपकी भरे समाज मे बेइज्जती का दे क्या पता आपका आत्म सम्मान इतना मजबूत हो की आप उठके कुछ कर ही जाएँ. कोशिश करने मे क्या जा रहा है तो बस कुछ उपाय ढूंढिए अच्छे अच्छे और हमे भी बताइए की कैसे अपनी बेइज्जती करा लें... आखिर हमे भी नाम कमाने का शौक है भाई..

4 Comments:

  • हिमांशु भाई आप यकीन मानिये कि बस एक बार डॉ.रूपेश श्रीवास्तव की विचारधारा से सहमति जता दीजिये अच्छीखासी बदनामी और बेइज्जती आपके हिस्से में आ जाएगी :)

    By Blogger फ़रहीन नाज़, At April 30, 2010 at 1:48 AM  

  • सच में.. अब तो हम भी यही चाहेंगे कि कोई हमारी भी बेइज़्ज़ती कर दे..

    By Blogger अबयज़ ख़ान, At April 30, 2010 at 10:39 AM  

  • बहुत सही दोस्त!
    आओ कभी मिलो....बहुत दिनों से हम इंतज़ार में हैं ......दिल से और जी भर का बेईज्ज़ती करनी है तुम्हारी .....लिखते रहो ऐसे ही.....

    By Blogger Nipun Pandey, At May 2, 2010 at 12:32 AM  

  • bahut shukriya janab... beijattiyon ke liye.. :)

    By Blogger हिमांशु पन्त, At May 2, 2010 at 5:10 AM  

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